Class 23
Code Of Ethics
The broad framework of principles and standards acceptable to the society
Principles enunciated in the Code Of Ethics guide the actions in Code Of Conduct
Nolan Committee –
Selfishness
Accountability
Leadership
Integrity
Openness
Objectivity
Honesty
Buddha, Ten Commandments, Quran, Seven Laws of Noah, Taoism, Lord Krishna
Herbert J. Taylor –
Is it the truth?
Is it fair to all concerned?
Will it build goodwill and better friendships?
Will it be Beneficial to all concerned?
सूचना का अधिकार अधिनियम
सूचना के अधिकार यानी RTI का अर्थ है कि कोई भी भारतीय नागरिक राज्य या केंद्र सरकार के कार्यालयों और विभागों से किसी भी जानकारी (जिसे सार्वजनिक सूचना माना जाता है) को प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है।
इसी अवधारणा के मद्देनज़र भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया था।
विशेषज्ञ इस अधिनियम को भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखते हैं।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
इस अधिनियम में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सार्वजानिक अथवा सरकारी प्राधिकरण से किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिये स्वतंत्र है, साथ ही इस अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना को आवेदन की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।
Section 8 in The Right to Information Act, 2005
8. Exemption from disclosure of information.
(1) Notwithstanding anything contained in this Act, there shall be no obligation to give any citizen,
(a) information, disclosure of which would prejudicially affect the sovereignty and integrity of India, the security, strategic, scientific or economic interests of the State, relation with foreign State or lead to incitement of an offence; ●
(b) information which has been expressly forbidden to be published by any court of law or tribunal or the disclosure of which may constitute contempt of court;
(c) information, the disclosure of which would cause a breach of privilege of Parliament or the State Legislature;
(f) information received in confidence from foreign government;
(g) information, the disclosure of which would endanger the life or physical safety of any person or identify the source of information or assistance given in confidence for law enforcement or security purposes;
(h) information which would impede the process of investigation or apprehension or prosecution of offenders
(j) information which relates to personal information the disclosure of which has not relationship to any public activity or interest, or which would cause unwarranted invasion of the privacy of the individual unless the Central Public Information Officer or the State Public Information Officer or the appellate authority, as the case may be, is satisfied that the larger public interest justifies the disclosure of such information
सूचना के अधिकार अधिनियम की चुनौतियाँ
1. यह अधिनियम आम लोगों को प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है, किंतु निरक्षरता और जागरूकता की कमी के कारण भारत में अधिकांश लोग इस अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
2. कई लोग मानते हैं कि इस अधिनियम में प्रावधानों का उल्लंघन करने की स्थिति में जो जुर्माना/दंड दिया गया है वह इतना कठोर नहीं है कि लोगों को इस कार्य से रोक सके।
3. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त जन जागरूकता का अभाव, सूचनाओं को संग्रहीत करने और प्रचार-प्रसार करने हेतु उचित प्रणाली का अभाव, सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (PIOs) की अक्षमता और नौकरशाही मानसिकता आदि को सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के कार्यान्वयन में बड़ी बाधा माना जाता है।
सरकार द्वारा अपने देश के नागरिकों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ (Services) उपलब्ध कराई जाती हैं जिन्हें जन सेवाएँ (Public Services) कहते हैं। •इन जन सेवाओं को जनता को उपलब्ध कराना ही जन (नागरिक) सेवा प्रदायगी (Public Services Delivery) कहा जाता है। •वस्तुत: सरकारी सार्वजनिक सेवाओं को स्थानीय सरकार, राज्य सरकार या केंद्र सरकार द्वारा जनता तक पहुँचाया जाता है। उदाहरण के लिये सीवेज एवं कचरा निपटान, सड़क की सफाई, सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, दूरसंचार सेवाएँ आदि। •
क्या है नागरिक घोषणापत्र ( Citizen Charter)? •नागरिक घोषणापत्र एक ऐसा लिखित दस्तावेज है जिसमें संगठन की अपनी सेवाओं के मानक, संगठन संबंधी सूचनाओं, पसंद और परामर्श, सेवाओं तक भेदभावरहित पहुँच, शिकायत निवारण एवं शिष्टाचार आदि के संबंध में अपने नागरिकों के प्रति प्रतिबद्धताओं का व्यवस्थित विवरण होता है । •नागरिक घोषणापत्र में सार्वजनिक सेवाओं का नागरिक केंद्रित होना सुनिश्चित किया जाता है। •नागरिक घोषणपत्र सुशासन के तीन महत्त्वपूर्ण घटकों यथा- पारदर्शिता, उत्तरदायित्व एवं जवाबदेहिता को लागू करने तथा सरकार एवं नागरिकों के मध्य अंतराल को कम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
भारत में नागरिक घोषणापत्र •गौरतलब है कि ब्रिटेन में लोक सेवाओं में दक्षता लाने के लिये 1991 में नागरिक घोषणापत्र लागू किया गया। • •भारत में 1997 में भारतीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में प्रभावी एवं जिम्मेदार प्रशासन हेतु एजेंडा पर सिफारिश की गई कि सभी लोक संगठनों के लिये नागरिक घोषणापत्र लाने के प्रयास किये जाएँ। इसके तहत चिन्हित मंत्रालयों एवं विभागों में नागरिक घोषणापत्र के निर्माण की निगरानी हेतु एक समिति का गठन किया गया। • • •2004 में प्रशासनिक सुधार एवं शिकायत निवारण विभाग ने नागरिक घोषणापत्र पर एक प्रपत्र प्रस्तुत किया जिसमें आदर्श नागरिक घोषणापत्र के मार्गदर्शक सिद्धांत बताए गए।
• •इसके अनुसार घोषणापत्र में निम्नलिखित बिंदु सम्मिलित होने चाहिये:
•विज़न एवं मिशन का विवरण।
•संगठन द्वारा संपादित कार्यों का विवरण।
•संगठन से जुड़े ग्राहक समूहों का विवरण।
•ग्राहकों को प्रदत्त सेवाओं का विवरण।
•जन शिकायत निवारण से संबंधित जानकारी।
•चार्टर का सरल होना आवश्यक।
नागरिक घोषणापत्र का मूल्यांकन
वर्ष 2002-03 में प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत निवारण विभाग ने एक निजी एजेंसी द्वारा तथा वर्ष 2008 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा विभागीय नागरिक घोषणापत्रों का मूल्यांकन और निम्नलिखित कमियों का उल्लेख किया गया-
•अधिकांश नागरिक घोषणापत्रों का प्रारूप ठीक नहीं होता तथा उसमें महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का अभाव होता है।
•अधिकांश घोषणापत्रों के निर्माण में पारदर्शिता एवं परामर्शी प्रक्रिया का अभाव होता है।
•नागरिक घोषणापत्रों में नवोन्मेष एवं अद्यतन जानकारियों का अभाव होता है।
•समय-समय पर पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जाता।
•जागरूकता एवं जागरूकता प्रसार के प्रयास का अभाव पाया गया।
•लोक संगठनों में नागरिक घोषणापत्र के प्रति रुचि का अभाव देखा गया।
• •Ideal Citizen Charter –
•Concrete (24 Hour Electricity Supply)
•Measurable (Calories of Food)
•Realistic
•Resources Linked
•Consultative (Anganwadi Workers, Asha Workers)
•Compensation
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